गुरुवार, 29 अक्तूबर 2009

अमरीकी महिला पत्रकार जो मुसलमान हो गयी

मेरी कोशिशों से तीन सौ व्यक्तियों ने मादक-द्रव्यों से तौबा की है और इक्कीस मर्दों और औरतों ने इस्लाम ग्रहण किया है। मैं एक अपाहिज औरत हूं। मगर मैं अपने आपको अपाहिज नहीं समझती, क्योंकि मेरा ईमान है कि जो व्यक्ति मुसलमान हो जाए, वह कभी अपाहिज नहीं हो सकता, क्योंकि खुदा उसका सहारा बन जाता है।सुश्री आमिना अश्वेत अमेरिकी महिला हैं, जो अपनी सामाजिक सेवाओं के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं। १९८० ई० में इनके कार्यों पर एक पुस्तक प्रकाशित हुई। उसके अनुसार ३५० व्यक्तियों ने उनकी प्रेरणा से नशा-सेवन छोड़ा था और २१ औरत-मर्दों ने इस्लाम कबूल कर लिया था।
उल्लेखनीय बात यह है कि शिकागो न्यूज़ से संबंध रखने वाली विलक्षण प्रतिभा की धनी ये पत्रकार महिला शारीरिक रूप से अपंग हैं। वे शिकागो के हबशियों की झोपड़ पट्टी में पैदा हुई, जहां गन्दगियों, अपराधों, नशाख़ोरियों, निर्धनता और दरिद्रता का गढ़ था। उनका पैदाइशी नाम सिंथिया था और उनके पिता भी हबशियों की तरह आवारागर्द, नशाख़ोर और अपराधी प्रवृति के थे। उनकी मां ही श्वेत लोगों के घरों में मज़दूरी करके घर का खर्च चलाती थी। बाप की लापरवाही और क्रूरता के कारण वे बाल्यावस्था में ही पोलियो का शिकार हो गयीं।

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

अमन और सुकून का केन्द्र केवल इस्लाम


मैं अध्ययन के बाद मुसलमान हुआ हूं। मेरे दिल में इस्लाम की बहुत कद्र है। मुसलमानों को इस्लाम विरासत में मिला है। इसलिए वे उसकी कद्र नहीं पहचानते। सच्चाई यह है कि मेरी जि़न्दगी में जितनी मुसीबतें आयीं, उनमें , अमन व सुकून की जगह केवल इस्लाम में ही मिली।
-मुहम्मद मार्माडियूक पिकथॉल,इंग्लैण्ड
मार्माडियूक पिकथॉल 17 अप्रैल 1875 ई० को इंग्लैण्ड के एक गांव में पैदा हुए। उनके पिता चाल्र्स पिकथॉल स्थानीय गिरजाघर में पादरी थे। चाल्र्स के पहली पत्नी से दस बच्चे थे। पत्नी की मृत्यु के बाद चाल्र्स ने दूसरी शादी की, जिससे मार्माडियूक पिकथॉल पैदा हुए। मार्माडियूक ने हिब्रो के प्रसिद्ध पब्लिक स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। उनके सहपाठियों में, जिन लोगों ने आगे चलकर ब्रिटेन के राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया, उनमें सर विंस्टन चर्चिल भी शामिल थे। चर्चिल से उनकी मित्रता अंतिम समय तक क़ायम रही।

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2009

इस्लाम ने मुझे नैतिक सम्बल दिया

अगर मैं इस्लाम ना अपनाता तो एक खिलाड़ी के रूप में इतना कामयाब ना होता। इस्लाम ने मुझे नैतिक सम्बल दिया।
करीम अब्दुल जब्बार अमेरिका के मशहूर बास्केटबॉल खिलाड़ी
करीम अब्दुल जब्बार अमेरिकी नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन के छह बार बेशकीमती खिलाड़ी के रूप में चुने गए। उन्हें बास्केटबॉल का हर समय महान खिलाड़ी माना गया। वे अपन हरलेम के बाशिन्दे थे और फरडीनेन्ड लेविस एलसिण्डर के रूप में पैदा हुए। बास्केटबॉल में एक नया शॉट स्काई हुक ईजाद करने वाले करीम अब्दुल जब्बार ने इस शॉट के जरिए बास्केटबॉल खेल में अपनी खास पहचान बनाई।सबसे पहले करीम अब्दुल जब्बार ने इस्लाम हम्मास अब्दुल खालिस नामक एक मुस्लिम व्यक्ति से सीखा। खालिस ने उन्हें बताया कि हर एक को चाहे वह नन हो,संन्यासी,अध्यापक,खिलाड़ी अथवा टीचर,सभी को संजीदगी से ईश्वरीय आदेश पर गौर करना चाहिए। इस बात पर ध्यान देने के बाद वे खालिस क ी इस्लामिक बातों पर चिंतन करने लगे,साथ ही उन्होने कुरआन का अध्ययन करना शुरू कर दिया। कुरआन अच्छी तरह समझने के लिए उन्होने बेसिक अरबी सीखी। उन्होने इस्लाम को अच्छी तरह सीखने के मकसद से १९७३ में सऊदी अरब और लीबिया का सफर किया। वे सर्वशक्तिमान ईश्वर में अटूट भरोसा करते हैं और साथ ही उनका पुख्ता यकीन है कि कुरआन अल्लाह का आखरी आदेश है और मुहम्मद सल्ललाहो अलैहेवसल्लम अल्लाह के आखरी पैगम्बर हंै।

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

कुरआन में मिला,मेरे हर सवाल का जवाब



मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि इस्लाम कबूल करने से पहले मैं किसी भी मुसलमान से नहीं मिला था। मैंने पहले कुरआन पढ़ा और जाना कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं है जबकि इस्लाम हर मामले में पूर्णता लिए हुए है।
केट स्टीवन्स अब-यूसुफ इस्लाम इंग्लैण्ड के माने हुए पॉप स्टार
मैं आधुनिक रहन सहन ,सुख-सुविधाओं और एशो आराम के साथ पला बढ़ा। मैं एक ईसाई परिवार में पैदा हुआ। हम जानते हैं कि हर बच्चाकु दरती रूप से एक खास फितरत और और स्वभाव के साथ पैदा होता लेकिन उसके माता- पिता उसको इधर उधर के धर्मों की तरफ मोड़ देते हैं। ईसाई धर्म में मुझे पढ़ाया गया कि ईश्वर से सीधा ताल्लुक नहीं जोड़ा जा सकता। ईसा मसीह के जरिए ही उस ईश्वर से जुड़ा जा सकता है। यही सत्य है कि ईसा मसीह ईश्वर तक पहुंचन का दरवाजा है। मैंने इस बात को थोड़ा बहुत स्वीकार किया,लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं था। जब मैं मसीह की मूर्तियां देखता तो सोचता यह तो पत्थर मात्र है। इनमें कोई प्राण नहीं। लेकिन जब मैं सुनता कि यही ईश्वर है तो मैं उलझन में फंस जाता और आगे कोई सवाल भी नहीं कर पाता।

शनिवार, 5 सितंबर 2009

गॉड सिर्फ एक ही है


जर्मन के डॉ विलफराइड हॉफमेन ने १९८० में जब इस्लाम कबूल किया तो जर्मनी में हलचल मच गई। उनके इस फैसले का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ। उन्होने अपना नाम मुराद हॉफमेन रखा। जर्मनी के दूत और नाटो के सूचना निदेशक रह चुके डॉ मुराद हॉफमेन ने इस्लाम पर कई किताबें लिखी हैं।
१९८० में इस्लाम ग्रहण करने वाले डॉ हॉफमेन १९३१ में जर्मनी कैथोलिक ईसाई परिवार में पैदा हुए। उन्होने न्यूयार्क के यूनियन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और म्यूनिख यूनिवर्सिटी से कानूनी शिक्षा हासिल की। १९५७ में धर्मशास्र में डॉक्टरेट की। १९६० में हार्वर्ड लॉ स्कूल से उन्होने एलएलएम की डिग्री हासिल की। १९८३ से १९८७ तक ब्रूसेल्स में उन्होने नाटो के सूचना निदेशक के रूप में काम किया। वे १९८७ में अल्जीरिया में जर्मनी के दूत बने और फिर १९९० में मोरक्को में चार साल तक जर्मनी एम्बेसेडर के रूप में काम किया। उन्होने १९८२ में उमरा और १९९२ में हज किया। विभिन्न तरह के अनुभवों ने डॉ हॉफमेन को इस्लाम की ओर अग्रसर किया। जब वे १९६१ में

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

आखिर इन मशहूर लोगों ने क्यों अपनाया इसलाम



आप खुद अपनी आँखों से देख लीजिये इन हस्तियों को
जो इसलाम अपनाकर मुसलमान हो गए
यहाँ क्लिक कीजिये
http://www.youtube.com/watch?v=UbPEntwSF04
http://www.youtube.com/watch?v=8zIlPa_f-_M&feature=related

शनिवार, 15 अगस्त 2009

एक पत्रकार का इस्लाम कबूल करना

इस्लाम कबूल करने के पहले अब्दुल्लाह अडियार डी।एम.के. के प्रसिद्ध समाचार-पत्र 'मुरासोलीÓ के 17 वर्षो तक संपादक रहे। डी.एम.के. नेता सी.एन. अन्नादुराई जो बाद में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी रहे, ने जनाब अडियार को संपादक पद पर नियुक्त किया था। जनाब अडियार ने 120 उपन्यास, 13 नाटक और इस्लाम पर 12 पुस्तकों की रचनाएं की।
जनाब अब्दुल्लाह अडियार महरहूम तमिल भाषा के प्रसिद्ध कवि, प्रत्रकार, उपन्यासकार और पटकथा लेखक थे। उनका जन्म 16 मई 1935 को त्रिरूप्पूर (तमिलनाडु) में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा कोयम्बटूर में हुई। वे नास्तिक थे, लेकिन विभिन्न धर्मों की पुस्तकें पढ़ते रहते थे। किसी पत्रकार और साहित्यकार को विभिन्न धर्मों के बारे में भी जानकारी रखनी पड़ती है। जनाब अब्दुल्लाह अडियार अध्ययन के दौरान इस परिणाम पर पहुंचे कि इस्लाम ही सच्चा धर्म है और मनुष्य के कल्याण की शिक्षा देता है। आखिरकार 6 जून 1987 ई। को वे मद्रास स्थित मामूर मस्जिद गये और इस्लाम कबूल कर लिया। इस्लाम कबूल करने के पहले वे डी।एम।के। के प्रसिद्ध समाचार-पत्र 'मुरासोलीÓ के 17 वर्षो तक संपादक रहे।

रविवार, 2 अगस्त 2009

इस्लाम में मिला दिली सुकून-मुहम्मद अली

मैंने इस्लाम का कई महीनों तक गहन अध्ययन किया और मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि इस्लाम सच्चा धर्म है, जो प्रकाशमान है।
                                 - मुहम्मद अली
दुनिया के तीन बार हैविवेट चैम्पियन रह चुके अमेरिका के मशहूर बॉक्सर
दुनिया के तीन बार हैविवेट चैम्पियन रह चुके अमेरिका के मशहूर बॉक्सर कैशियस क्ले जब इस्लाम कबूल करके मुहम्मद अली बने तो अमेरिका में मानो तूफान आ गया। मुहम्मद अली का इस्लाम में दाखिल होना अमेरिका में इस्लाम के फैलने में महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ। इस घटना से अमेरिका में चमात्कारिक रूप से इस्लाम के आगे बढऩे में कामयाबी मिली। १७ जनवरी १९४२ को जन्मे मुहम्मद अली २२ साल की उम्र में १९६४ में इस्लाम के आगोश में आ गए।
२७ फरवरी १९६४ को मुहम्मद अली ने एसोसिएटेड प्रेस के सामने इस्लाम धर्म अपनाने का ऐलान किया। यहां पेश है उस वक्त एसोसिएटेड प्रेस के सामने मुहम्मद अली का किया गया खुलासा। मुहम्मद अली ने बताया कि आज उन्होने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया है। इस्लाम वह रास्ता है जिसमें आपको हरदम सुकून व चैन मिलता है।बाईस वर्षीय क्ले ने कहा-वे ऐसे मुसलमानों को काले मुसलमान कहते हैं,दरअसल यह यहां की प्रैस का दिया हुआ शब्द है।

गुरुवार, 23 जुलाई 2009

कुरआन ने मुझ पर जादुई असर डाला


मैंने इस्लामिक प्रार्थना में विनम्रता और आत्मीयता महसूस की है। दूसरी तरफ इंग्लैण्ड के लोग भौतिकवादी और उथले हैं। वे खुश होने का दिखावा करते हैं लेकिन खुशी उनसे दूर है
अब्दुर्रहीम ग्रीन ब्रिटेन, पहले ईसाई अब इस्लाम के माने हुए स्कॉलर
तंजानिया में जन्में और ब्रिटेन में पले बढ़े ४५ वर्षीय ग्रीन का इस्लाम से परिचय मिस्र में हुआ जहां वे अक्सर अपनी छुट्टियां बिताते थे। अक्टूबर १९९७ में उन्होंने गॉड्स फाइनल रिवेलेशन विषय पर बंगलौर में लेक्चर दिया। इस दौरान बंगलौर से अंगे्रजी में प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका इस्लामिक वॉइस ने उनका इन्टरव्यू लिया। यहां पेश है उस वक्त लिया गया अब्दुर्रहीम ग्रीन के इन्टरव्यू का हिन्दी अनुवाद।
अब्दुर्रहीम ग्रीन इस्लामिक दुनिया में एक जाना पहचाना नाम है। वे पिछले बीस सालों से ब्रिटेन में इस्लामिक मूल्यों के प्रचार प्रसार में जुटे हैं। वे इस्लामिक चैनल पीस टीवी और अन्य इस्लामिक चैनल्स के जरिए भी इस्लाम को बेहतर तरीके से दुनिया के सामने रख रहे हैं। वे पहले ईसाई थे लेकिन ईसाई आस्था से उनका जल्दी ही मोह भंग हो गया। सुकून की तलाश में अब्दुर्रहीम ग्रीन ने कई धर्मों का अध्ययन किया।

मंगलवार, 16 जून 2009

इस्लाम अपनाने के बाद मुझे नई जिंदगी मिली

   मशहूर पॉप सिंगर माइकल जेक्सन इस्लाम अपनाकर मिकाइल बन गए हें यह तो आप जानते हें लेकिन क्या आप जानते हैं माइकल के बड़े भाई जो खुद पॉप सिंगर और गिटारवादक थे. वे भी 1989 में मुस्लिम हो गए थे.
अमेरिका के मशहूर पॉप सिंगर माइकल जैक्शन के बड़े भाई जेरीमन जैक्शन ने 1989 में इस्लाम अपना लिया। इस्लाम कबूल करने के बाद जेरीमन जैक्शन का पहली बार इन्टरव्यू लन्दन के अरबी समाचार पत्र अल-मुजल्ला में प्रकाशित हुआ। इस इन्टरव्यू में उन्होंने इस्लाम अपनाने से जुड़े कई सवालों के जवाब दिए। यह उस वक्त का इन्टरव्यू है जब इनके छोटे भाई माइकल जैक्शन मुस्लिम नहीं हुए थे।
इस्लाम की तरफ आपका सफर कब और कैसे शुरू हुआ?
1989 की बात है, जब मैं अपनी बहन के साथ मध्यपूर्वी देशों की यात्रा पर गया था। बहरीन में रुकने पर हमारा गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया। मैं कुछ बच्चों से मिला और उनसे हल्की-फुल्की गपशप की। मैंने उनसे कुछ सवाल पूछे और उन मासूम बच्चों ने भी जिज्ञासापूर्वक मेरे से कई बातें पूछी। बातचीत के दौरान उन्होंने मुझसे मेरे धर्म के बारे में सवाल किया। मैंने उन बच्चों को बताया कि मैं ईसाई हूं। जब मैंने उनसे पूछा-आप किस धर्म के हो ? इस सवाल पर उनके चेहरे पर एक खास चमक नजर आई। वे सब एक साथ बोले-इस्लाम। उनके इस उत्साहित उत्तर ने मुझे अन्दर तक हिलाकर रख दिया। फिर वे मुझे इस्लाम के बारे में बताने लगे। उन बच्चों ने अपनी उम्र के मुताबिक टुकड़ों में मुझे इस्लाम से जुड़ी कुछ जानकारी दी। उनके बात करने के अन्दाज से मुझे लगा कि उन्हें इस्लाम पर गर्व है। इस तरह मेरा रुख इस्लाम की तरफ हुआ।

सोमवार, 1 जून 2009

मुस्लिम औरतों की जीवन-शैली पसन्द है

अंग्रेजी के पाठकों में कमला दास और मलयालम के पाठकों में माधवी कुट्टी के नाम से जानी जाने वाली मशहूर लेखिका और कवयित्री ने दिसम्बर 1999 ई. में इस्लाम कबूल करके अपना नाम सुरैया रख लिया तो केरल के साहित्य, समाज, धर्म और संस्कृति के क्षेत्रों में जैसा तूफान आया, वैसा वहां के इतिहास में किसी एक व्यक्ति के धर्म बदलने से नहीं आया था।
कमला सुरेया ने आखिर इसलाम क्यों कबूला
 पढिये उन्ही की जुबानी 
 आपने इस्लाम कबूल करने का फैसला कब किया ?
सुरैया : ठीक-ठीक समय तो याद नहीं। मैं समझती हूं, यह 27 वर्ष पहले की बात है।
आपने इतने लम्बे समय तक इन्तजार क्यों किया ?
सुरैया : सत्तर के दशक में, जब मैंने इस पर सबसे पहले अपने पति से बात की तो उन्होंने इन्तजार करने को कहा। उन्होंने मुझे इस्लाम पर किताबें पढऩे की सलाह दी। मैंने दोबारा 1984 ई। के लोकसभा चुनावों से पहले धर्म बदलने के बारे में सोचा था। लेकिन उस समय मेरे सभी बच्चों की न तो शादी हुई थी और न वे किसी अच्छे काम पर लगे थे। मैं अपने निर्णय का प्रभाव उनकी जिन्दगी पर नहीं डालना चाहती थी। अब वे सभी अच्छी तरह सेटल्ड हो गए हैं और खुश हैं। इसलिए मैंने अब इस्लाम कबूल करने का ऐलान किया।
इस्लाम से आपका परिचय किसने कराया ?

रविवार, 31 मई 2009

इस्लाम में पीस है,सुकून है

पाकिस्तान के मशहूर क्रिकेटर यूसुफ योहान्ना की जुबानी कि क्यों बने वे यूसुफ योहान्ना से मोहम्मद यूसुफ
पाकिस्तान के मशहूर क्रिकेटर यूसुफ योहान्ना ने सितम्बर २००५ में इस्लाम कबूल किया। उन्होंने अपना नाम मोहम्मद यूसुफ रखा। यूसुफ का कहना है कि उन्होंने इस्लाम अपनाने के ऐलान से तीन साल पहले ही इस्लाम अपना लिया था लेकिन पारिवारिक कारणों के चलते उन्होंने इसका ऐलान नहीं किया था। यूसुफ की बीवी ने भी यूसुफ के साथ ही इस्लाम अपना लिया और अपना नाम तानिया से फातिमा रख लिया। यहां पेश है मोहम्मद यूसुफ का इन्टरव्यू जिसमें उन्होंने इस्लाम कबूल करने से जुड़े विभिन्न सवालों के जवाब दिए है।
आपका बचपन कहां और कैसे गुजरा?
मेरा बचपन रेलवे कालोनी में गुजरा। मुझे बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था।

शुक्रवार, 13 मार्च 2009

खुदा ने मेरे लिए इस्लाम को चुना



पीटर सैंडर्स ने अपना कैरियर साठ के दशक के मध्य में शुरू किया। वे अपने वक्त के संगीत के सितारों बॉब डायलन,जिमी हैंडरिक्स, द डोर्स और रोलिंग स्टोन्स की अगली पीढ़ी के नुमाइंदे थे। लेकिन संगीत से सैंडर्स के दिल की प्यास नहीं बुझ सकी।
१९७० के आखिर में उन्होंने भारत की आध्यात्मिक यात्रा की। साल भर बाद जब वे ब्रिटेन लौटे तो इस्लाम धर्म ग्रहण कर चुके थे और उन्होने अपना नाम बदलकर अब्दुल अदीम रख लिया था। सैंडर्स अब प्यासे नहीं थे। इस्लाम ने उनके काम को नई ऊर्जा दे दी थी। इसी वर्ष उन्होंने मुस्लिम देशों की यात्राएं शुरू की।
१९७१ में उन्होंने काबा और हज यात्रियों की करीब से तस्वीरें खींची जो पहली बार पश्चिमी अखबारों-द सण्डे टाइम्स और द ऑब्जर्वर में छपीं। आज सैंडर्स या अब्दुल अदीम मुस्लिम समाज के सबसे बड़े फोटोग्राफर के रूप में जाने जाते हैं,संभव है वे इकलौते भी हों। अब्दुल अदीम एक फोटो प्रदर्शनी लगाने जकार्ता आए। रिपब्लिका में प्रकाशित इमान यूनियार्ता एफ़ द्वारा लिए गए उनके साक्षात्कार के प्रमुख अंश हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं
१९७१ में भारत की यात्रा के बाद आपने इस्लाम धर्म अपना लिया। यह कैसे हुआ?

रविवार, 22 फ़रवरी 2009

हम ईश्वर की शरण में आना चाहते थे

अपनी बीवी सायरा के साथ ऐ आर रहमान
इस्लाम कबूल करने का फैसला अचानक नहीं लिया गया। यह फैसला मेरा और मेरी मां दोनों का सामूहिक फैसला था। हम दोनों सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरण में आना चाहते थे।
संगीतकार ए आर रहमान ने सन् २००६ में अपनी मां के साथ हज अदा किया था। हज पर गए रहमान से अरब न्यूज के सैयद फैसल अली ने बातचीत की। यहां पेश है उस वक्त सैयद फैसल अली की रहमान से हुई गुफ्तगू।
भारत के मशहूर संगीतकार ए आर रहमान किसी परिचय के मोहताज नहीं है। तड़क-भड़क और शोहरत की चकाचौंध से दूर रहने वाले ए आर रहमान की जिंदगी ने एक नई करवट ली जब वे इस्लाम की आगोश में आए। रहमान कहते हैं-इस्लाम कबूल करने पर जिंदगी के प्रति मेरा नजरिया बदल गया। भारतीय फिल्मी-दुनिया में लोग कामयाबी के लिए मुस्लिम होते हुए हिन्दू नाम रख लेते हैं,लेकिन मेरे मामले में इसका उलटा है यानी था मैं दिलीप कुमार और बन गया अल्लाह रक्खा रहमान। मुझे मुस्लिम होने पर फख्र है।

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

एक अमेरिकी मॉडल जो मुसलमान हो गयी

अमीना जनां
आश्चर्यचकित रह गयी कि अमेरिकी लेखकों के दुष्प्रचार के विपरीत अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्ल० मानव-जाति के महान उद्धारक और सच्चे शुभ-चिन्तक हैं। विशेष रूप से उन्होंने महिलाओं को जो सम्मान दिया है, उसकी पहले या बाद में कोई मिसाल नहीं मिलती। अल्लाह का लाख-लाख शुक्र है कि मेरी बातों से प्रभावित होकर अब तक लगभग 600 अमेरिकी महिलाएं इस्लाम के दायरे में दाखिल हो चुकी हैं।
    मेरे माता-पिता प्रोटेस्टेन्ट ईसाई थे। ननिहाल और ददिहाल दोनों ओर धर्म की बड़ी चर्चा थी। हाई स्कूल की शिक्षा समाप्त हुई तो मेरा विवाह हो गया। और शादी होते ही मैं मॉडलिंग के पेशे से जुड़ गयी। अल्लाह ने मुझे सुन्दर बनाया था। फिर मैं मेहनत भी खूब करती थी। जल्द ही कारोबार चल निकला। पैसे की रेल-पेल हो गयी। गाड़ी, बंगला आदि सुख-सुविधाओं की सभी चीज़ें उपलब्ध हो गयीं। स्थिति यह हो गयी थी कि अपनी पसन्द का जूता खरीदने के लिए मैं हवाई जहाज़ से दूसरे शहर जाती थी।

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

पवित्र कुरआन ने मेरी प्यास बुझायी

मरयम जमीला (पूर्व नाम माग्रेट मारकस, अमेरिका)
    मोहतरमा मरयम जमीला न्यूयार्क (अमेरिका) के एक यहूदी परिवार में पैदा हुई। इस्लाम कबूल करने से पहले ही वे आम अमेरिकी व यहूदी औरतों से हटकर शिष्ट ढंग से जिन्दगी गुजार रही थीं। मुसलमान होने के बाद वे पाकिस्तान आ गयीं। उन्होंने इस्लाम पर अनेक पुस्तकों की रचनाएं की हैं। अब तक उनकी एक दर्जन से अधिक अंग्रेजी रचनाएं लोगों के सामने आ चुकी हैं।
अपने बारे में वे कहती हैं कि कुरआन से मेरा परिचय अजीब तरीके से हुआ। मैं बहुत छोटी थी जब मुझे संगीत से बहुत लगाव हो गया। बहुत -से गीतों और क्लासिकल रिकार्ड बहुत देर-देर त· मेरे कानों को लोरियां देते रहते। मेरी उम्र लगभग 11 वर्ष की थी, जब एक दिन सिर्फ इत्तिफाक से मैंने रेडियो पर अरबी संगीत सुन लिया, जिसने दिल व दिमाग को खुशी के एक अजीब एहसास से भर दिया। नतीजा यह हुआ कि मैं खाली समय में बड़े शौक से अरबी संगीत सुनती, यहां तक कि एक समय आया कि मेरी अभिरुचि ही बदल गयी। मैं अपने पिता के साथ न्यूयार्क के सीरियाई दूतावास में गयी और अरबी संगीत के बहुत- से रिकार्ड ले आयी।

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

एक महिला डॉक्टर का इस्लाम स्वीकारना

डॉ. अमीना कॉक्सन इंग्लैण्ड
अमीना कॉक्सन का पैतृक नाम एन.कॉक्सन हैं। वे डॉक्टर और न्यूरोलॉजिस्ट हैं तथा लन्दन की हार्ट स्ट्रीट में उनका क्लीनिक है। उन्होंने विस्तृत अध्ययन और चिन्तन-मनन के पश्चात 1985 ई। में इस्लाम स्वीकार किया। लेखक हनी शाह ने इनसे डाक द्वारा इस्लाम ग्रहण करने का कारण पूछा और प्राप्त जानकारियों को अपनी उल्लेखनीय पुस्तक Why Islam is Our only Choice? में सुरक्षित कर दिया, जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:
मैं 11 अक्टूबर 1940 ई. को लन्दन के एक कैथोलिक घराने में पैदा हुई। मेरी मां एक बड़े धनी बाप की बेटी थी, जबकि पिता ब्रिटिश-अमेरिकन टुबैको कम्पनी के डायरेक्टर थे। हम दो भाई-बहन हैं। दोनों ने बोर्डिंग कैथोलिक स्कूल में शिक्षा ग्रहण की। भाई आजकल अमेरिका में एक प्रसिद्ध व्यापारी हैं। उनके तीन बच्चे हैं और वे कैथोलिक ईसाइ की तरह आज भी पाबन्दी से चर्च जाते हैं। मेरे पिता को टुबैको कम्पनी की नौकरी के सिलसिले में 1945 ई. से 1953 ई. तक आठ साल का समय मिस्र मे गुजारना पड़ा।