सोमवार, 1 जून 2009

मुस्लिम औरतों की जीवन-शैली पसन्द है

अंग्रेजी के पाठकों में कमला दास और मलयालम के पाठकों में माधवी कुट्टी के नाम से जानी जाने वाली मशहूर लेखिका और कवयित्री ने दिसम्बर 1999 ई. में इस्लाम कबूल करके अपना नाम सुरैया रख लिया तो केरल के साहित्य, समाज, धर्म और संस्कृति के क्षेत्रों में जैसा तूफान आया, वैसा वहां के इतिहास में किसी एक व्यक्ति के धर्म बदलने से नहीं आया था।
कमला सुरेया ने आखिर इसलाम क्यों कबूला
 पढिये उन्ही की जुबानी 
 आपने इस्लाम कबूल करने का फैसला कब किया ?
सुरैया : ठीक-ठीक समय तो याद नहीं। मैं समझती हूं, यह 27 वर्ष पहले की बात है।
आपने इतने लम्बे समय तक इन्तजार क्यों किया ?
सुरैया : सत्तर के दशक में, जब मैंने इस पर सबसे पहले अपने पति से बात की तो उन्होंने इन्तजार करने को कहा। उन्होंने मुझे इस्लाम पर किताबें पढऩे की सलाह दी। मैंने दोबारा 1984 ई। के लोकसभा चुनावों से पहले धर्म बदलने के बारे में सोचा था। लेकिन उस समय मेरे सभी बच्चों की न तो शादी हुई थी और न वे किसी अच्छे काम पर लगे थे। मैं अपने निर्णय का प्रभाव उनकी जिन्दगी पर नहीं डालना चाहती थी। अब वे सभी अच्छी तरह सेटल्ड हो गए हैं और खुश हैं। इसलिए मैंने अब इस्लाम कबूल करने का ऐलान किया।
इस्लाम से आपका परिचय किसने कराया ?

सुरैया : इस्लाम से पहला परिचय मुंबई में दो मुस्लिम नेत्रहीन बच्चों, इरशाद अहमद और इम्तियाज अहमद के माध्यम से हुआ। दोनों बच्चे नेशनल एसोसिएशन फॉर द ब्लाइंड द्वारा मेरे पास भेजे गये थे। उस समय मैं स्वैच्छिक रूप से नेत्रहीन बच्चों को पढ़ाया-लिखाया करती थी। वे बच्चे मेरे फ्लैट बैंक हाउस (चर्चगेट, मुंबई) में मेरे साथ रहते थे। मुझे महसूस हुआ कि उन्हें इस्लामी साहित्य भी पढ़ाया जाना चाहिए,इसलिए मैं उन्हें इस्लामी किताबें भी पढ़ाया करती थी।
इस्लाम में ऐसा क्या था जिसने आपको आकर्षित किया ?
सुरैया : मैं परदा बहुत पसन्द करती हूं, जो मुस्लिम औरतें पहनती हैं। मैं मुस्लिम औरतों की पारम्परिक जीवन-शैली को पसन्द करती हूं।
लेकिन क्या परदा आपकी आजादी पर पाबन्दी नहीं लगा देगा?
सुरैया : मैं अब आजादी नहीं चाहती। मैंने आजादी का बहुत इस्तेमाल कर लिया। आजादी मेरे लिए बोझ बन गई थी। अपने जीवन को नियमित और अनुशासित बनाने के लिए हिदायत चाहती हूं। मैं एक आका चाहती हूं, जो मेरी हिफाजत करे मैं अल्लाह की बन्दी,उसकी आज्ञाकारी बनना चाहती हूं। सचमुच, मैं पिछले 24 सालों से कभी-कभार बुर्का पहनती रही हूं। मैं बाजारों और विदेशों में भी बुर्का पहनकर जाती रही हूं। मेरे पास बहुत-से बुर्के हैं। परदे में औरत की इज्जत की जाती है। कोई भी उसे छूता नहीं और न ही छेड़छाड़ करता है। आपको पूरी हिफाजत मिलती है।
इस्लाम कबूल करने का तात्कालिक कारण क्या था?
सुरैया : हाल ही में मैं एक कार से मालाबार से कोच्चि जा रही थी। मैं सुबह 5: 45 पर चली थी। मैंने उगते हुए सूरज को देखा। आश्चर्यजनक रूप से उसका रंग डूबते हुए सूर्य जैसा था। वह मेरे साथ सफर करता रहा। सात बजे वह सफेद हो गया। वर्षों से मैं उस निशान की तलाश में थी जो मुझसे कहे कि अब इस्लाम कबूल कर लो। आखिरकार, मुझे वह पैगाम मिल ही गया।

क्या आपके बच्चों ने आपके इस फैसले को मान लिया?

सुरैया : हां, बिलकुल। उन्होंने मेरे फैसले का सम्मान किया।
टाइम्स ऑफ इण्डिया: ५ दिसम्बर १९९९

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