सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

इमानुअल नेे बताई वे तेरह बातें जिनकी वजह से उन्होंने इस्लाम अपनाया

मशहूर अफ्रीकी फुटबॉलर इमानुअल एडबेयर का मानना है कि ईसाइयों की तुलना में आज मुसलमान ईसा मसीह की बातों को ज्यादा मानते हैं। ईसा मसीह को मानने का दावा करने वाले ईसाई उनकी शिक्षाओं से दूर है जबकि मुसलमानों की जिंदगी में ईसा मसीह की बातें देखने को मिल जाएंगी। 


इमानुअल नेे बताई वे तेरह बातें जिनकी वजह से उन्होंने इस्लाम अपनाया-
                                  
                                   1
ईसा मसीह की शिक्षा थी कि ईश्वर एक ही है और सिर्फ वही इबादत और पूजा के लायक है
बाइबिल में है-
हे, इस्राइल, सुन, हमारा परमेश्वर सिर्फ एक ही है। (व्यवस्थाविवरण-6: 4)
यीशु ने उसे उत्तर दिया, सब आज्ञाओं में से यह मुख्य है; हे इस्राएल सुन; प्रभु हमारा परमेश्वर एक ही प्रभु है। (मरकुस-12:29)
मुसलमानों का विश्वास और आस्था भी यही है कि एक परमेश्वर के अलावा कोई इबादत के लायक नहीं।
कुरआन कहता है- 
अल्लाह तो केवल अकेला पूज्य है। यह उसकी महानता के प्रतिकूल है कि उसका कोई बेटा हो। आकाशों और धरती में जो कुछ है, उसी का है। और अल्लाह कार्यसाधक की हैसियत से काफी है। (4:171)
                                  2
 ईसा मसीह ने कभी सुअर का मांस नहीं खाया 
बाइबिल में है- 
और सुअर, जो चिरे अर्थात फटे खुर का होता तो है परन्तु पागुर नहीं करता, इसलिए वह तुम्हारे लिए अशुद्ध है।
इनके मांस में से कुछ न खाना, और इनकी लोथ को छूना भी नहीं; ये तो तुम्हारे लिए अशुद्ध है।                      (लेवव्यवस्था-11: 7-8)
मुसलमान भी सुअर का मांस नहीं खाते। 
कुरआन कहता है-
कह दो, 'जो कुछ मेरी ओर प्रकाशना की गई है, उसमें तो मैं नहीं पाता कि किसी खाने वाले पर उसका कोई खाना हराम किया गया हो, सिवाय इसके लिए वह मुरदार हो, यह बहता हुआ रक्त हो या ,सुअर का मांस हो - कि वह निश्चय ही नापाक है। (6:145)
                                                                  3
 ईसा मसीह ने भी अस्सलामु अलैकुम (तुम पर शान्ति हो) का संबोधन किया था। यही संबोधन मुस्लिम एक-दूसरे से मिलते वक्त करते हैं।
बाइबिल में है- 
यीशु ने फिर उनसे कहा, तुम्हें शान्ति मिले; जैसे पिता ने मुझे भेजा है, वैसे ही मैं भी तुम्हें भेजता हूं। (यूहन्ना-20: 21)
                                                                  4
ईसा मसीह हमेशा कहते थे-ईश्वर ने चाहा तो (इंशा अल्लाह) जैसा कि मुसलमान कुछ करने से पहले कहते हैं
कुरआन कहता है-
और न किसी चीज के विषय में कभी यह कहो, 'मैं कल इसे कर दूंगा।' बल्कि अल्लाह की इच्छा ही लागू होती है। और जब तुम भूल जाओ तो अपने रब को याद कर लो और कहो, 'आशा है कि मेरा रब इससे भी करीब सही बात की ओर मार्गदर्शन कर दे।'
 (18: 23-24)
                                                                      
ईसा मसीह प्रार्थना करने से पहले अपने हाथ, चेहरा और पैर धोते थे। मुस्लिम भी इबादत करने से पहले अपना हाथ, चेहरा और पैर धोते हैं यानी वुजू बनाते हैं।
                                                                      6 
ईसा मसीह और बाइबिल के दूसरे पैगम्बर अपना सिर जमीन पर टिकाकर प्रार्थना करते थे यानी सजदा करते थे।
बाइबिल में है-
 फिर वह थोड़ा और आगे बढ़कर मुंह के बल गिरा, और यह प्रार्थना करने लगा, कि हे मेरे पिता, यदि हो सके, तो यह कटोरा मुझ से टल जाए; तो भी जैसा मैं चाहता हूं वैसा नहीं, परन्तु जैसा तू चाहता है वैसा ही हो।
 (मत्ती-26: 39)
मुसलमान भी अपनी इबादत में सजदा करते हैं।
कुरआन कहता है-
'ऐ मरयम! पूरी निष्ठा के साथ अपने रब की आज्ञा का पालन करती रह, और सजदा कर और झुकने वालों के साथ तू भी झुकती रह।' (3: 43)