मरयम जमीला (पूर्व नाम माग्रेट मारकस, अमेरिका)
मोहतरमा मरयम जमीला न्यूयार्क (अमेरिका) के एक यहूदी परिवार में पैदा हुई। इस्लाम कबूल करने से पहले ही वे आम अमेरिकी व यहूदी औरतों से हटकर शिष्ट ढंग से जिन्दगी गुजार रही थीं। मुसलमान होने के बाद वे पाकिस्तान आ गयीं। उन्होंने इस्लाम पर अनेक पुस्तकों की रचनाएं की हैं। अब तक उनकी एक दर्जन से अधिक अंग्रेजी रचनाएं लोगों के सामने आ चुकी हैं।
अपने बारे में वे कहती हैं कि कुरआन से मेरा परिचय अजीब तरीके से हुआ। मैं बहुत छोटी थी जब मुझे संगीत से बहुत लगाव हो गया। बहुत -से गीतों और क्लासिकल रिकार्ड बहुत देर-देर त· मेरे कानों को लोरियां देते रहते। मेरी उम्र लगभग 11 वर्ष की थी, जब एक दिन सिर्फ इत्तिफाक से मैंने रेडियो पर अरबी संगीत सुन लिया, जिसने दिल व दिमाग को खुशी के एक अजीब एहसास से भर दिया। नतीजा यह हुआ कि मैं खाली समय में बड़े शौक से अरबी संगीत सुनती, यहां तक कि एक समय आया कि मेरी अभिरुचि ही बदल गयी। मैं अपने पिता के साथ न्यूयार्क के सीरियाई दूतावास में गयी और अरबी संगीत के बहुत- से रिकार्ड ले आयी।
मोहतरमा मरयम जमीला न्यूयार्क (अमेरिका) के एक यहूदी परिवार में पैदा हुई। इस्लाम कबूल करने से पहले ही वे आम अमेरिकी व यहूदी औरतों से हटकर शिष्ट ढंग से जिन्दगी गुजार रही थीं। मुसलमान होने के बाद वे पाकिस्तान आ गयीं। उन्होंने इस्लाम पर अनेक पुस्तकों की रचनाएं की हैं। अब तक उनकी एक दर्जन से अधिक अंग्रेजी रचनाएं लोगों के सामने आ चुकी हैं।
अपने बारे में वे कहती हैं कि कुरआन से मेरा परिचय अजीब तरीके से हुआ। मैं बहुत छोटी थी जब मुझे संगीत से बहुत लगाव हो गया। बहुत -से गीतों और क्लासिकल रिकार्ड बहुत देर-देर त· मेरे कानों को लोरियां देते रहते। मेरी उम्र लगभग 11 वर्ष की थी, जब एक दिन सिर्फ इत्तिफाक से मैंने रेडियो पर अरबी संगीत सुन लिया, जिसने दिल व दिमाग को खुशी के एक अजीब एहसास से भर दिया। नतीजा यह हुआ कि मैं खाली समय में बड़े शौक से अरबी संगीत सुनती, यहां तक कि एक समय आया कि मेरी अभिरुचि ही बदल गयी। मैं अपने पिता के साथ न्यूयार्क के सीरियाई दूतावास में गयी और अरबी संगीत के बहुत- से रिकार्ड ले आयी।