गुरुवार, 23 जुलाई 2009

कुरआन ने मुझ पर जादुई असर डाला


मैंने इस्लामिक प्रार्थना में विनम्रता और आत्मीयता महसूस की है। दूसरी तरफ इंग्लैण्ड के लोग भौतिकवादी और उथले हैं। वे खुश होने का दिखावा करते हैं लेकिन खुशी उनसे दूर है
अब्दुर्रहीम ग्रीन ब्रिटेन, पहले ईसाई अब इस्लाम के माने हुए स्कॉलर
तंजानिया में जन्में और ब्रिटेन में पले बढ़े ४५ वर्षीय ग्रीन का इस्लाम से परिचय मिस्र में हुआ जहां वे अक्सर अपनी छुट्टियां बिताते थे। अक्टूबर १९९७ में उन्होंने गॉड्स फाइनल रिवेलेशन विषय पर बंगलौर में लेक्चर दिया। इस दौरान बंगलौर से अंगे्रजी में प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका इस्लामिक वॉइस ने उनका इन्टरव्यू लिया। यहां पेश है उस वक्त लिया गया अब्दुर्रहीम ग्रीन के इन्टरव्यू का हिन्दी अनुवाद।
अब्दुर्रहीम ग्रीन इस्लामिक दुनिया में एक जाना पहचाना नाम है। वे पिछले बीस सालों से ब्रिटेन में इस्लामिक मूल्यों के प्रचार प्रसार में जुटे हैं। वे इस्लामिक चैनल पीस टीवी और अन्य इस्लामिक चैनल्स के जरिए भी इस्लाम को बेहतर तरीके से दुनिया के सामने रख रहे हैं। वे पहले ईसाई थे लेकिन ईसाई आस्था से उनका जल्दी ही मोह भंग हो गया। सुकून की तलाश में अब्दुर्रहीम ग्रीन ने कई धर्मों का अध्ययन किया।
इस दौरान उन्होंने कुरआन पढऩा करना शुरू किया। वे कुरआन से बेहद प्रभावित हुए। उन्होंने कुरआन में अपने हर सवाल का जवाब पाया। वे इस नतीजे पर पहुंचे की कुरआन ईश्वरीय ग्रन्थ और फिर अब्दुर्रहीम ग्रीन ने १९८८ में इस्लाम कबूल कर लिया।  
अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि बताएं?
मैं १९६४ में तंजानिया के दारुस्सलाम में पैदा हुआ। मेरे माता-पिता दोनों ब्रिटेन के थे। मेरे पिता गेविन ग्रीन ब्रिटेन उपनिवेशवाद में एडमिनिस्ट्रेटर थे। बाद मे उन्होंने १९७६ में बारक्लेज बैंक जॉइन कर लिया और उन्हें इजिप्टियन बारक्लेज बैंक को जमाने के लिए इजिप्ट भेजा गया। मैंने मशहूर रोमन कैथोलिक मोनेस्टिक स्कूल एम्पलेफोर्थ में पढ़ाई की और बाद में इतिहास का अध्ययन करने लन्दन यूनिवर्सिटी चला गया। हालंाकि मैंने बीच में ही पढ़ाई छोड़ दी।अभी मैं इंग्लैण्ड की एक इस्लामिक मीडिया कम्पनी के साथ काम कर रहा हूं। इस्लाम के मैसेज को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाने में जुटा हूं।
आपने बीच में ही पढ़ाई क्यों छोड़ दी?
मेरा ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली से मोहभंग हो गया था। दरअसल ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली में विश्व इतिहास को प्रायोजित तरीके से पेश किया गया था। उन्होंने अपनी सभ्यता को महिमामण्डित करके यूरोप पर थोपा है। इजिप्ट में रहने के दौरान कुछ आलीशान खण्डहर देखकर मुझे लगा कि यह तो अच्छे पुरातत्ववेत्ताओं का काम था। मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि पश्चिम ने इतिहास को तोड़-मरोड़कर पेश किया है। मैंने दुनिया के विभिन्न लोगों और सभ्यताओं के इतिहास का अपने स्तर पर अध्ययन करना शुरू किया। मैंने विभिन्न धर्मग्रंथों और दर्शनशास्त्र को भी पढ़ा। मैंने तीन साल तक गहराई से बोध धर्म का भी अध्ययन किया। इस दौरान मैंने जब कुरआन पढ़ा तो मैं इससे बेहद प्रभावित हुआ। कुरआन की शिक्षा ने मुझ पर जादुई असर डाला और मुझे पूरी तरह यकीन हो गया कि कुरआन सच्चे ईश्वर की तरफ से भेजा गया धर्मग्रन्थ है। मैं नहीं जानता कि मैं किस तरह इस्लाम की छांव में आ पहुंचा। मेरा भरोसा है कि ईश्वर ही ने मुझे सही राह दिखाई।
फिर भी आपको इस्लाम में ऐसा क्या खास लगा जिससे आप सबसे ज्यादा प्रभावित हुए?
दरअसल आठ साल की उम्र में ही मेरा ईसाईयत से मोहभंग होने लगा था। मैरी की जय जैसे गीतों के जरिए जो कु छ हमें पढ़ाया जाता था, वो मेरे गले नहीं उतरता था। जहां एक तरफ ईसाई ईश्वर को अनन्त और अपार बताते थे,वहीं गॉड को मैरी की कोख से पैदा होना बताने में भी उन्हें कोई झिझक नहीं थी। मुझे लगता था इस हिसाब से तो मैरी गॉड से भी बड़ी हुई। दूसरा ईश्वर का तीन रूपों में होने का ईसाई मत भी मुझे समझ नहीं आता था। ईश्वर का तीन रूपों में बंटे होना और फिर भी एक होने को मैं पचा नहीं पाता था। मेरे लिए मुश्किल तब हो गई जब एक इजिप्टियन ने मेरे से ईसाई धर्म संबंधी कई तीखे सवाल कर डाले। ईसाई मत को लेकर कन्फ्यूज्ड होने के बावजूद मैंने उसके सामने एक सिध्दांतवादी ईसाई होने की कोशिश की जैसे कि अधिकतर गौरे मध्यमवर्गीय ईसाई करते हैं। मैं तब चकरा गया जब उसने मुझसे यह मनवा ही लिया कि ईश्वर जब सूली पर चढ़ाने से मर गया है तो फिर ईश्वर का अनन्त और अपार होने का ईसाई मत खोखला साबित हो जाता है। इस पर मुझे महसूस हुआ कि मैं ऐसी बेतुकी अवधारणा पर भरोसा कर रहा हूं जिसके मुताबिक दो और दो पंाच होते हैं। यह दौर मेरी किशोर अवस्था का था। धीरे-धीरे पश्चिम की बंधी बंधाई और मशीनी जिंदगी से मुझे नफरत सी होने लगी। मैंने पाया कि यूरोपियन लोगों की जिंदगी के संघर्ष का मकसद सिर्फ जिंदगी का लुत्फ उठाना और एंजोय करना है। वे अपने जीवन को किसी अच्छे और बड़े मकसद के लिए नहीं जीते।मैंने जब फिलीस्तीन के मुद्दे पर इजिप्ट और फिलीस्तीन के लोगों से बात की तो समझ आया कि कैसे पश्चिमी देश अपने लोगों को इस मुद्दे पर बरगलाते रहते है। यहूदियों ने कई ऐतिहासिक,राजनैतिक और आर्थिक भ्रान्तियां गढ़कर मीडिया के द्वारा जबरदस्त तरीके से प्रचारित की है। आखिर ऐसे कैसे हो सकता है कि २००० साल पहले यह उनका देश था जिसे छोड़कर वे चले गए थे। मैंने यह भी जाना कि अभी के यहूदी वास्तविक रूप में गुलाम थे जो बाद में यहूदी बने और फिलीस्तीनी सरजमीन शुरु से हरी-भरी रही है। यह तो इजराइल ने गढ़ा है कि जादुई तरीके से यह रेगिस्तान से ग्रीनलैण्ड में तब्दील हो गई। मैंने जब लैटिन अमेरिका और सोवियत ब्लॉक में अमरीका क ी भूमिका का अध्ययन किया तो अमेरिका का दोगला चरित्र देखने को मिला।
आपने इजिप्ट और इंग्लैण्ड के लोगों में किस तरह का फर्क महसूस किया?
मैंने पाया कि इजिप्ट के बाशिंदे गरीब और मेहनतकश होने के बावजूद खुशमिजाज हैं। वे अपनी सारी बातें अल्लाह पर छोड़ देते हैं और अपना गम भूल जाते हैं। वे इबादत में अल्लाह के सामने अपनी परेशानियां रखते हैं और अल्लाह उनकी मदद करता है। मैंने उनकी इस्लामिक प्रार्थना में विनम्रता और आत्मीयता महसूस की है।दूसरी तरफ इंग्लैण्ड के लोग भौतिकवादी और उथले हैं। वे खुश होने का दिखावा करते हैं लेकिन खुशी उनसे दूर है। उनकी प्रार्थना में गाने हैं,डांस है,तालियंा पीटना है लेकिन गॉड के प्रति विनम्रता और आत्मीयता उनकी प्रार्थनाओं में नजर नहीं आएंगी। मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि पश्चिमी लोगों की मानसिकता यहूदी नियंत्रित मीडिया की देन है। इन्हीं में एक है फिलीस्तीन को लेकर पश्चिम के लोगों की सोच। मीडिया वहां के लोगों पर एक ही तरह की मानसिकता थोपता है। देखा गया है कि अमेरिका तीसरी दुनिया के देशों को प्रताडि़त करने के लिए मानवाधिकार का बहाना तलाशता रहता है जबकि खुद उन लैटिन अमेरिकी देशों के नेताओं को प्रताडि़त करता रहता है जो उसकी बात नहीं मानते। अमेरिकी मीडिया इन बातों की कभी आलोचना नहीं करता।
क्या इंग्लैण्ड में एक मुस्लिम के रूप में जिंदगी गुजारना मुश्किल है पश्चिमी मानसिकता व्यक्तिवादी है यानी दूसरों के बजाय हर कोई खुद की सोचता है। इस्लामिक जिंदगी के लिए यह परेशानी का कारण बनती है। नेक मुस्लिम इस तरह के माहोल से परेशानी महसूस करते हैं। हद से ज्यादा खुलापन और सैक्स के चलते उन्हें दिक्कतें होती हैं। इंग्लैण्ड की अधिकतर लड़कियां १३ साल की उम्र तक अपना कोमार्य खो चुकी होती है और सामान्यत एक लड़की के तीन-चार ब्वॉय फै्रण्ड होते हैं। पश्चिम के मुसलमानों के साथ दिक्कत यह है कि वे उस पाश्चात्य सोसायटी के साथ कै से घुले-मिले जहंा स्वच्छंदता,सैक्स और नशा आम है। वे खुद को इन सबसे कैसे बचाए रखें? इंग्लैण्ड में इस्लाम के प्रचार के अच्छे नतीजे सामने आए हैं? इंग्लैण्ड में इस्लामिक मूल्यों का धीरे धीरे प्रचार प्रसार हो रहा है। नव मुस्लिम्स में उत्साह है। वे जानते हैं कि आम आदमी का जीवन किस तरह अंधेरे में है।
आपके परिवार के बारे में बताएं? मेरे दो बीवियां और छह बच्चे हैं। क्या ब्रिटेन में बहू विवाह पर पाबंदी नहीं है? यंू तो ब्रिटेन में दूसरे विवाह पर पाबंदी है लेकिन ब्रिटेन के कई लोगों ने दो विवाह कर रखे हैं। दूसरी शादी कॉमन लॉ वाइव्ज के तहत उचित है जिसमें दूसरी बीवी और उसके बच्चे विरासत के हकदार होते हैं।

0 टिप्पणियाँ: