गुरुवार, 2 अगस्त 2012

ईसाई पादरी अपना रहे हैं इस्लाम

शायद आप यकीन ना करें लेकिन हकीकत यही है कि इस्लाम की गोद में आने वाले लोगों में एक बड़ी तादाद ईसाई  पादरियों की है। यह किताब इसी सच्चाई को आपके सामने पेश करती है। यह ईसाई किसी एक मुल्क या इलाके  विशेष के नहीं है, बल्कि दुनिया के कई देशों के हैं। अंगे्रजी की इस किताब में 18  ईसाई पादरियों का जिक्र हैं जिन्होंने सच्चे दिल से इस्लाम की सच्चाई को कुबूल किया और ईसाईयत को छोड़कर इस्लाम को गले लगा लिया।
इस किताब में इनके वे इंटरव्यू शामिल किए गए हैं जिसमें उन्होंने बताया कि आखिर उन्होंने इस्लाम क्यों अपनाया। उनकी नजर में इस्लाम में ऐसी क्या खूबी थी कि उन्होंने पादरी जैसे सम्मानित ओहदे का त्यागकर इस्लाम को अपना लिया।
पुस्तक  में शामिल ये अट्ठारह पादरी ग्यारह  देशों  के हैं। इनमें शामिल हैं अमेरिका के यूसुफ एस्टीज, उनके  पिता, मित्र पेटे, स्यू वेस्टन, जैसन कू्रज, राफेल नारबैज, डॉ. जेराल्ड डिक्र्स, एम. सुलैमान, कनाडा के डॉ. गैरी मिलर, ब्रिटेन के इदरीस तौफीक, ऑस्ट्रेलिया के सेल्मा ए कुक, जर्मनी के डॉ. याह्या ए.आर. लेहमान, रूस के विचैसलव पॉलोसिन, इजिप्ट के इब्राहीम खलील, स्पैन के एंसलम टोमिडा, श्रीलंका के जॉर्ज एंथोनी , तंजानिया के मार्टिन जॉन और ब्रूंडी की मुस्लिमा।
  • इस्लाम अपनाने वाले ये पादरी वे हैं जिन्होंने हाल ही के दौर में इस्लाम को अपनाया। पढि़ए इस किताब को और जानिए इस्लाम की सच्चाई इन पूर्व पादरियों की जुबान से।
  • इस किताब को यहां पेश करने का मकसद इस्लाम से जुड़ी लोगों की गलतफहमियां दूर करना और इस्लाम की सच्चाई को बताना है, मकसद किसी भी मजहब का मजाक उड़ाना नहीं है।
  • क्लिक कीजिए और रूबरू होइए इस किताब से

    Eighteen Priests Journey From Church to Mosque

बुधवार, 1 अगस्त 2012

इस इसाई पादरी ने आखिर अपना धर्म क्यों बदल लिया?

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ब्रिटेन के पूर्व कैथोलिक ईसाई पादरी इदरीस तौफीक कुरआन से इतने हुए कि उन्होंने इस्लाम कुबूल कर लिया।
ईमानवालों के साथ दुश्मनी करने में यहूदियों और बहुदेववादियों को तुम सब लोगों से बढ़कर सख्त पाओग। और ईमानवालों के साथ दोस्ती के मामले में सब लोगों में उनको नजदीक पाओगे जो कहते हैं कि हम नसारा (ईसाई) हैं। यह इस वजह से है कि उनमें बहुत से धर्मज्ञाता और संसार त्यागी संत पाए जाते हैं और इस वजह से कि वे घमण्ड नहीं करते।
जब वे उसे सुनते हैं जो रसूल पर अवतरित हुआ है तो तुम देखते हो कि उनकी आंखें आंसुओं से छलकने लगती हैं। इसका कारण यह है कि उन्होंने सच्चाई को पहचान लिया है। वे कहते हैं-हमारे रब हम ईमान ले आए। अत तू हमारा नाम गवाही देने वालों में लिख ले।          (सूरा:अल माइदा ८२-८३)
कुरआन की ये वे आयतें है जिन्हें इंग्लैण्ड में अपने स्टूडेण्ट्स को पढ़ाते वक्त इदरीस तौफीक बहुत प्रभावित हुए और उन्हें इस्लाम की तरफ लाने में ये आयतें अहम साबित हुईं।

बुधवार, 25 जुलाई 2012

इस्लाम कबूल किए जाने वाला धर्म

प्रोफेसर अब्दुल्लाह बैनिल अमरीका
प्रोफेसर बैनिल हैविट अमरीका के  एक मशहूर विचारक और लेखक रहे हैं। उनकी गिनती अमरीका के इस्लाम कबूल करने वाले अहम लोगों में की जाती है। उनका इस्लामी नाम अब्दुल्लाह हसन बैनिल है। इस लेख में उन्होंने इस्लाम की उन खूबियों का जिक्र  किया है जिनसे वे बेहद प्रभावित हुए।
मेरा इस्लाम कबूल करना कोई ताज्जुब की बात नहीं है न ही इसमें किसी तरह के लालच का कोई दखल है। मेरे खयाल में यह जहन की फितरती तब्दीली और उन धर्मों का ज्यादा अध्ययन करने का नतीजा है जो इंसानी अक्लों  पर काबिज है। मगर यह बदलाव उसी शख्स में  पैदा हो सकता है जिसका दिल व दिमाग धार्मिक पक्षपात और पूर्वाग्रहों से ऊपर उठा हुआ हो और साफ दिल से अच्छे और बुरे में अंतर कर सकता हो।

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

पादरी जो मुसलमान हो गया

इब्राहिम खलील अहमद जिनका पुराना नाम खलील फिलोबस था, पहले इजिप्ट के कॉप्टिक पादरी थे। फिलोबस ने धर्मशास्त्र में प्रिंसटोन यूनिवर्सिटी से एम ए किया। इस्लाम को गलत रूप में पेश करने के मकसद से फिलोबस ने इसका अध्ययन किया। वे इस्लाम में कमियां ढूढना चाहते थे लेकिन हुआ इसका उलटा। वे इस्लाम से बेहद प्रभावितहुए और उन्होने अपने चार बच्चों के साथ इस्लाम कबूल कर लिया।
जानिए खलील इब्राहिम आखिर कैसे आए इस्लाम की गोद में?मैं १३जनवरी १९१९को अलेक्जेन्डेरिया में पैदा हुआ था। मैंने सैकण्डरी तक की शिक्षा अमेरिकन मिशन स्कूल से हासिल की। १९४२ में डिप्लोमा हासिल करने के बाद मैंने धर्मशास्र में स्पेशलाइजेशन के लिए यूनिवर्सिटी में एडमिशान लिया। धर्मशास्र में प्रवेश लेना आसान नहीं था। चर्च की खास सिफारिश पर ही इस विभाग में एडमिशन लिया जा सकता था और इसके लिए एक मुशिकल परीक्षा से भी गुजरना पडता था। मेरे लिए अलेक्जेन्डेरिया अलअटारिन चर्च ने सिफारिश की और लॉअर इजिप्ट की चर्च असेम्बली ने भी मेरा इम्तिहान लिया।

रविवार, 9 जनवरी 2011

अब मैं मुस्लिम के रूप में ही जीना चाहती हूं

वे कट्टर ईसाई थीं। लेकिन जब इस्लाम का अध्ययन किया और इस्लाम के रूप में सच्चाई सामने आई तो इसे अपना लिया।
पूर्व पादरी, मिशनरी, प्रोफेसर और धर्मशास्त्र में मास्टर डिग्री धारक खदीजा स्यू वेस्टन की जुबानी कि आखिर वे किस तरह इस्लाम की आगोश में आईं।
  यह तुम्हें क्या हो गया है? यह पहली प्रतिक्रिया होती थी जब इस्लाम अपनाने के बाद पहली बार मेरे क्लास के साथी, दोस्त और साथी पादरी मुझसे मिलते थे।
मुझे लगता मैं उनको दोष नहीं दे सकती थी। धर्म बदलने की वजह से मैं उनके लिए सबसे ज्यादा नापसंदीदा बन गई थी। पहले मैं प्रोफेसर, पादरी, चर्च प्लांटर और मिशनरी थी। धर्म के मामले में मैं बेहद कट्टर थी।    बात तब की है जब मैंने पादरियों की एक विशेष शिक्षण संस्था से ग्रेजुएशन के बाद धर्मशास्त्र में मास्टर डिग्री ली ही थी। इसके छह महीने बाद ही मेरी मुलाकात एक महिला से हुई जो सऊदी अरब में काम करती थी और वह इस्लाम अपना चुकी थी। मैंने उस महिला से जाना कि इस्लाम में महिलाओं को किस तरह की हैसियत और अधिकार दिए गए हैं? उसका जवाब जानकर मुझे बेहद हैरत हुई। दरअसल मैं नहीं जानती थी कि इस्लाम में महिलाओं को इतना ऊंचा मुकाम दिया गया है।

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

टोनी ब्लेयर की साली मुसलमान बनी

ब्रिटेन के पूर्व प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की साली ने धर्म परिवर्तन कर इस्लाम कबूल कर लिया है. चेरी ब्लेयर की बहन लौरेन बूथ ने पिछले दिनों  इस्लाम कबूल करने की घोषणा की. बूथ पेशे से पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं.
मीडिया रिपोर्टों के अनुसार 43 साल की बूथ ने इस्लाम कबूल करने की बात लंदन में पिछले दिनों  सामाजिक संगठन ग्लोबल पीस एंड यूनिटी 2010 के बैनर तले हुए एक कार्यक्रम में उजागर की. कई इस्लामिक  नेताओं की मौजूदगी में बूथ ने बताया कि उन्होंने यह फैसला उन लोगों की धारणा बदलने के लिए किया है जो इस्लाम को आतंकवाद फैलाने वाला मानते हैं.
http://www.dw-world.de/dw/article/0,,6147468,00.html

रविवार, 5 सितंबर 2010

सोच-समझकर इस्लाम चुना

आमिना थॉमस
(भूतपूर्व ‘अन्नम्मा थॉमस’)
ईसाई पादरी की बेटी
केरल, भारत
क़ुरआन और बाइबल के तुलनात्मक अध्ययन और सच्चे दिल से अल्लाह के सामने दुआ ने इस्लाम की ओर झुके हुए मेरे दिल को ताक़त दी और मैं अन्दर ही अन्दर मुसलमान हो गई।
  मैं दक्षिणी भारत के एक प्रोटेस्टेंट ईसाई घराने में पैदा हुई और पली-बढ़ी। लेकिन अब मैं बहुत ख़ुश हूं कि मैं एक मुस्लिम औरत हूं। केवल संयोगवश मुसलमान नहीं बनी, बल्कि ख़ूब सोच-समझकर मैंने इस्लाम का चयन किया है। संसार के पालनहार, जिसने सही रास्ते अर्थात् इस्लाम की ओर मेरा मार्गदर्शन किया, उसका मैं जितना भी शुक्र अदा करूं, कम है। मेरा इस्लाम क़बूल करना विभिन्न धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन का परिणाम है।

रविवार, 29 अगस्त 2010

तीन हजार अमेरिकी सैनिकों ने अपनाया इस्लाम

नमाज़ अदा करते अमेरिकी मुस्लिम सैनिक
डॉ. अबू अमीना बिलाल फीलिप्
क्या आपने भी सुना था कि खाड़ी युद्ध के दौरान तीन हजार अमेरिकी सैनिकों ने इस्लाम अपना लिया था। यह सच है। बहुत कम लोग जानते हैं कि इस बदलाव के पीछे कौन हैं? जिन लोगों ने इस्लाम की यह दावत इन अमेरिकी सैनिकों तक पहुंचाई उनमें से एक अहम शख्सियत हैं डॉ. अबू अमीना बिलाल फीलिप्स। अबू अमीना फीलिप्स जमैका में जन्मे और पढ़ाई कनाड़ा में की । फिलहाल वे दुबई अमेरिकन यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे हैं। अबू अमीना पहले ईसाई थे लेकिन 1972 में इस्लाम अपनाकर वे मुस्लिम बन गए।

शुक्रवार, 23 जुलाई 2010

एक साथ तीन पादरी मुसलमान



अमेरिका के तीन ईसाई पादरी इस्लाम की शरण में आ गए। उन्हीं तीन पादरियों में से एक पूर्व ईसाई पादरी यूसुफ एस्टीज की जुबानी कि कैसे वे जुटे थे एक मिस्री मुसलमान को ईसाई बनाने में, मगर जब सत्य सामने आया तो खुद ने अपना लिया इस्लाम।
 बहुत से लोग मुझसे पूछते हैं कि आखिर मैं एक ईसाई पादरी से मुसलमान कैसे बन गया? यह भी उस दौर में जब इस्लाम और मुसलमानों के खिलाफ हम नेगेटिव माहौल पाते हैं। मैं उन सभी का शुक्रिया अदा करता हूं जो मेरे इस्लाम अपनाने की दास्तां में दिलचस्पी ले रहे हैं। लीजिए आपके सामने पेश है मेरी इस्लाम अपनाने की दास्तां-
  मैं मध्यम पश्चिम के एक कट्टर इसाई घराने में पैदा हुआ था। सच्चाई यह है कि मेरे परिवार वालों और पूर्वजों ने अमेरिका में कई चर्च और स्कूल कायम किए। 1949 में जब मैं प्राइमेरी स्कूल में था तभी हमारा परिवार टेक्सास के हाउस्टन शहर में बस गया।

रविवार, 4 अप्रैल 2010

एक अमेरिकी पादरी जिसने इस्लाम कबूल किया

       जेसॉन क्रुज,पूर्व ईसाई पादरी
अल्लाह का शुक्र है कि मुझे अल्लाह ने 2006 में इस्लाम रूपी बेशकीमती ईनाम से नवाजा। जब भी कोई मुझसे यह पूछता है कि मैं कैसे इस सच्चे धर्म की तरफ आया तो मैं झिझक जाता हूं। क्योंकि यह मेरी काबलियत नहीं बल्कि यह अल्लाह ही की हिदायत और रहमत है कि उसने मुझे सच्ची राह दिखाई। बिना अल्लाह की मर्जी और रहमत के कोई इस सच्चे मार्ग की तरफ नहीं आ सकता।
मैं न्यूयॉर्क के एक कैथोलिक परिवार में पैदा हुआ। मेरे माता और पिता रोमन कैथोलिक थे। हम इतवार को चर्च जाते थे। पहले मैंने ईसाई धर्म की शिक्षा ली,ईसा मसीह के स्मरणार्थ पहले भोज में शामिल हुआ और फिर मैंने रोमन कैथोलिक चर्च की सदस्यता कबूल कर ली। जब मैं जवान हुआ तो मुझे परमेश्वर की ओर से मार्गदर्शन के संकेत का अहसास होने लगा। इसका अर्थ मैंने यह लगाया कि यह मेरे लिए रोमन कैथोलिक पादरी बनने का मैसेज है। मैंने यह बात अपनी मां को बताई तो वह बहुत खुश हुई और वह मुझे हमारे इलाके के पादरी के पास ले गई।
इसे दुर्भाग्य मानें या सोभाग्य कि यह ईसाई पादरी अपने पेशे से खुश नहीं था और इसने मुझे पादरी बनने के विचार से ही दूर रहने की सलाह दी। इससे मैं विचलित हुआ। इस बीच परमेश्वर के शुरूआती मैसेज के अहसास को भूला देने,अपनी मूर्खता और किशोर अवस्था के चलते मैंने एक अलग ही रास्ता चुन लिया। बदकिस्मती से जब मैं सात साल का था तो मेरा परिवार बिखर गया। मेरे माता-पिता के बीच तलाक हो गया और मैं अपने पिता से दूर हो गया।

गुरुवार, 29 अक्टूबर 2009

अमरीकी महिला पत्रकार जो मुसलमान हो गयी

मेरी कोशिशों से तीन सौ व्यक्तियों ने मादक-द्रव्यों से तौबा की है और इक्कीस मर्दों और औरतों ने इस्लाम ग्रहण किया है। मैं एक अपाहिज औरत हूं। मगर मैं अपने आपको अपाहिज नहीं समझती, क्योंकि मेरा ईमान है कि जो व्यक्ति मुसलमान हो जाए, वह कभी अपाहिज नहीं हो सकता, क्योंकि खुदा उसका सहारा बन जाता है।सुश्री आमिना अश्वेत अमेरिकी महिला हैं, जो अपनी सामाजिक सेवाओं के कारण विश्व प्रसिद्ध हैं। १९८० ई० में इनके कार्यों पर एक पुस्तक प्रकाशित हुई। उसके अनुसार ३५० व्यक्तियों ने उनकी प्रेरणा से नशा-सेवन छोड़ा था और २१ औरत-मर्दों ने इस्लाम कबूल कर लिया था।
उल्लेखनीय बात यह है कि शिकागो न्यूज़ से संबंध रखने वाली विलक्षण प्रतिभा की धनी ये पत्रकार महिला शारीरिक रूप से अपंग हैं। वे शिकागो के हबशियों की झोपड़ पट्टी में पैदा हुई, जहां गन्दगियों, अपराधों, नशाख़ोरियों, निर्धनता और दरिद्रता का गढ़ था। उनका पैदाइशी नाम सिंथिया था और उनके पिता भी हबशियों की तरह आवारागर्द, नशाख़ोर और अपराधी प्रवृति के थे। उनकी मां ही श्वेत लोगों के घरों में मज़दूरी करके घर का खर्च चलाती थी। बाप की लापरवाही और क्रूरता के कारण वे बाल्यावस्था में ही पोलियो का शिकार हो गयीं।

बुधवार, 21 अक्टूबर 2009

अमन और सुकून का केन्द्र केवल इस्लाम


मैं अध्ययन के बाद मुसलमान हुआ हूं। मेरे दिल में इस्लाम की बहुत कद्र है। मुसलमानों को इस्लाम विरासत में मिला है। इसलिए वे उसकी कद्र नहीं पहचानते। सच्चाई यह है कि मेरी जि़न्दगी में जितनी मुसीबतें आयीं, उनमें , अमन व सुकून की जगह केवल इस्लाम में ही मिली।
-मुहम्मद मार्माडियूक पिकथॉल,इंग्लैण्ड
मार्माडियूक पिकथॉल 17 अप्रैल 1875 ई० को इंग्लैण्ड के एक गांव में पैदा हुए। उनके पिता चाल्र्स पिकथॉल स्थानीय गिरजाघर में पादरी थे। चाल्र्स के पहली पत्नी से दस बच्चे थे। पत्नी की मृत्यु के बाद चाल्र्स ने दूसरी शादी की, जिससे मार्माडियूक पिकथॉल पैदा हुए। मार्माडियूक ने हिब्रो के प्रसिद्ध पब्लिक स्कूल में शिक्षा प्राप्त की। उनके सहपाठियों में, जिन लोगों ने आगे चलकर ब्रिटेन के राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन को बड़े पैमाने पर प्रभावित किया, उनमें सर विंस्टन चर्चिल भी शामिल थे। चर्चिल से उनकी मित्रता अंतिम समय तक क़ायम रही।

शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2009

इस्लाम ने मुझे नैतिक सम्बल दिया

अगर मैं इस्लाम ना अपनाता तो एक खिलाड़ी के रूप में इतना कामयाब ना होता। इस्लाम ने मुझे नैतिक सम्बल दिया।
करीम अब्दुल जब्बार अमेरिका के मशहूर बास्केटबॉल खिलाड़ी
करीम अब्दुल जब्बार अमेरिकी नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन के छह बार बेशकीमती खिलाड़ी के रूप में चुने गए। उन्हें बास्केटबॉल का हर समय महान खिलाड़ी माना गया। वे अपन हरलेम के बाशिन्दे थे और फरडीनेन्ड लेविस एलसिण्डर के रूप में पैदा हुए। बास्केटबॉल में एक नया शॉट स्काई हुक ईजाद करने वाले करीम अब्दुल जब्बार ने इस शॉट के जरिए बास्केटबॉल खेल में अपनी खास पहचान बनाई।सबसे पहले करीम अब्दुल जब्बार ने इस्लाम हम्मास अब्दुल खालिस नामक एक मुस्लिम व्यक्ति से सीखा। खालिस ने उन्हें बताया कि हर एक को चाहे वह नन हो,संन्यासी,अध्यापक,खिलाड़ी अथवा टीचर,सभी को संजीदगी से ईश्वरीय आदेश पर गौर करना चाहिए। इस बात पर ध्यान देने के बाद वे खालिस क ी इस्लामिक बातों पर चिंतन करने लगे,साथ ही उन्होने कुरआन का अध्ययन करना शुरू कर दिया। कुरआन अच्छी तरह समझने के लिए उन्होने बेसिक अरबी सीखी। उन्होने इस्लाम को अच्छी तरह सीखने के मकसद से १९७३ में सऊदी अरब और लीबिया का सफर किया। वे सर्वशक्तिमान ईश्वर में अटूट भरोसा करते हैं और साथ ही उनका पुख्ता यकीन है कि कुरआन अल्लाह का आखरी आदेश है और मुहम्मद सल्ललाहो अलैहेवसल्लम अल्लाह के आखरी पैगम्बर हंै।

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

कुरआन में मिला,मेरे हर सवाल का जवाब



मैं इस बात पर जोर देना चाहूंगा कि इस्लाम कबूल करने से पहले मैं किसी भी मुसलमान से नहीं मिला था। मैंने पहले कुरआन पढ़ा और जाना कि कोई भी व्यक्ति पूर्ण नहीं है जबकि इस्लाम हर मामले में पूर्णता लिए हुए है।
केट स्टीवन्स अब-यूसुफ इस्लाम इंग्लैण्ड के माने हुए पॉप स्टार
मैं आधुनिक रहन सहन ,सुख-सुविधाओं और एशो आराम के साथ पला बढ़ा। मैं एक ईसाई परिवार में पैदा हुआ। हम जानते हैं कि हर बच्चाकु दरती रूप से एक खास फितरत और और स्वभाव के साथ पैदा होता लेकिन उसके माता- पिता उसको इधर उधर के धर्मों की तरफ मोड़ देते हैं। ईसाई धर्म में मुझे पढ़ाया गया कि ईश्वर से सीधा ताल्लुक नहीं जोड़ा जा सकता। ईसा मसीह के जरिए ही उस ईश्वर से जुड़ा जा सकता है। यही सत्य है कि ईसा मसीह ईश्वर तक पहुंचन का दरवाजा है। मैंने इस बात को थोड़ा बहुत स्वीकार किया,लेकिन मैं इस बात से पूरी तरह सहमत नहीं था। जब मैं मसीह की मूर्तियां देखता तो सोचता यह तो पत्थर मात्र है। इनमें कोई प्राण नहीं। लेकिन जब मैं सुनता कि यही ईश्वर है तो मैं उलझन में फंस जाता और आगे कोई सवाल भी नहीं कर पाता।

शनिवार, 5 सितंबर 2009

गॉड सिर्फ एक ही है


जर्मन के डॉ विलफराइड हॉफमेन ने १९८० में जब इस्लाम कबूल किया तो जर्मनी में हलचल मच गई। उनके इस फैसले का बड़े पैमाने पर विरोध हुआ। उन्होने अपना नाम मुराद हॉफमेन रखा। जर्मनी के दूत और नाटो के सूचना निदेशक रह चुके डॉ मुराद हॉफमेन ने इस्लाम पर कई किताबें लिखी हैं।
१९८० में इस्लाम ग्रहण करने वाले डॉ हॉफमेन १९३१ में जर्मनी कैथोलिक ईसाई परिवार में पैदा हुए। उन्होने न्यूयार्क के यूनियन कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और म्यूनिख यूनिवर्सिटी से कानूनी शिक्षा हासिल की। १९५७ में धर्मशास्र में डॉक्टरेट की। १९६० में हार्वर्ड लॉ स्कूल से उन्होने एलएलएम की डिग्री हासिल की। १९८३ से १९८७ तक ब्रूसेल्स में उन्होने नाटो के सूचना निदेशक के रूप में काम किया। वे १९८७ में अल्जीरिया में जर्मनी के दूत बने और फिर १९९० में मोरक्को में चार साल तक जर्मनी एम्बेसेडर के रूप में काम किया। उन्होने १९८२ में उमरा और १९९२ में हज किया। विभिन्न तरह के अनुभवों ने डॉ हॉफमेन को इस्लाम की ओर अग्रसर किया। जब वे १९६१ में

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

आखिर इन मशहूर लोगों ने क्यों अपनाया इसलाम



आप खुद अपनी आँखों से देख लीजिये इन हस्तियों को
जो इसलाम अपनाकर मुसलमान हो गए
यहाँ क्लिक कीजिये
http://www.youtube.com/watch?v=UbPEntwSF04
http://www.youtube.com/watch?v=8zIlPa_f-_M&feature=related

शनिवार, 15 अगस्त 2009

एक पत्रकार का इस्लाम कबूल करना

इस्लाम कबूल करने के पहले अब्दुल्लाह अडियार डी।एम.के. के प्रसिद्ध समाचार-पत्र 'मुरासोलीÓ के 17 वर्षो तक संपादक रहे। डी.एम.के. नेता सी.एन. अन्नादुराई जो बाद में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री भी रहे, ने जनाब अडियार को संपादक पद पर नियुक्त किया था। जनाब अडियार ने 120 उपन्यास, 13 नाटक और इस्लाम पर 12 पुस्तकों की रचनाएं की।
जनाब अब्दुल्लाह अडियार महरहूम तमिल भाषा के प्रसिद्ध कवि, प्रत्रकार, उपन्यासकार और पटकथा लेखक थे। उनका जन्म 16 मई 1935 को त्रिरूप्पूर (तमिलनाडु) में हुआ। प्रारंभिक शिक्षा कोयम्बटूर में हुई। वे नास्तिक थे, लेकिन विभिन्न धर्मों की पुस्तकें पढ़ते रहते थे। किसी पत्रकार और साहित्यकार को विभिन्न धर्मों के बारे में भी जानकारी रखनी पड़ती है। जनाब अब्दुल्लाह अडियार अध्ययन के दौरान इस परिणाम पर पहुंचे कि इस्लाम ही सच्चा धर्म है और मनुष्य के कल्याण की शिक्षा देता है। आखिरकार 6 जून 1987 ई। को वे मद्रास स्थित मामूर मस्जिद गये और इस्लाम कबूल कर लिया। इस्लाम कबूल करने के पहले वे डी।एम।के। के प्रसिद्ध समाचार-पत्र 'मुरासोलीÓ के 17 वर्षो तक संपादक रहे।

रविवार, 2 अगस्त 2009

इस्लाम में मिला दिली सुकून-मुहम्मद अली

मैंने इस्लाम का कई महीनों तक गहन अध्ययन किया और मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि इस्लाम सच्चा धर्म है, जो प्रकाशमान है।
                                 - मुहम्मद अली
दुनिया के तीन बार हैविवेट चैम्पियन रह चुके अमेरिका के मशहूर बॉक्सर
दुनिया के तीन बार हैविवेट चैम्पियन रह चुके अमेरिका के मशहूर बॉक्सर कैशियस क्ले जब इस्लाम कबूल करके मुहम्मद अली बने तो अमेरिका में मानो तूफान आ गया। मुहम्मद अली का इस्लाम में दाखिल होना अमेरिका में इस्लाम के फैलने में महत्वपूर्ण कदम साबित हुआ। इस घटना से अमेरिका में चमात्कारिक रूप से इस्लाम के आगे बढऩे में कामयाबी मिली। १७ जनवरी १९४२ को जन्मे मुहम्मद अली २२ साल की उम्र में १९६४ में इस्लाम के आगोश में आ गए।
२७ फरवरी १९६४ को मुहम्मद अली ने एसोसिएटेड प्रेस के सामने इस्लाम धर्म अपनाने का ऐलान किया। यहां पेश है उस वक्त एसोसिएटेड प्रेस के सामने मुहम्मद अली का किया गया खुलासा। मुहम्मद अली ने बताया कि आज उन्होने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया है। इस्लाम वह रास्ता है जिसमें आपको हरदम सुकून व चैन मिलता है।बाईस वर्षीय क्ले ने कहा-वे ऐसे मुसलमानों को काले मुसलमान कहते हैं,दरअसल यह यहां की प्रैस का दिया हुआ शब्द है।

गुरुवार, 23 जुलाई 2009

कुरआन ने मुझ पर जादुई असर डाला


मैंने इस्लामिक प्रार्थना में विनम्रता और आत्मीयता महसूस की है। दूसरी तरफ इंग्लैण्ड के लोग भौतिकवादी और उथले हैं। वे खुश होने का दिखावा करते हैं लेकिन खुशी उनसे दूर है
अब्दुर्रहीम ग्रीन ब्रिटेन, पहले ईसाई अब इस्लाम के माने हुए स्कॉलर
तंजानिया में जन्में और ब्रिटेन में पले बढ़े ४५ वर्षीय ग्रीन का इस्लाम से परिचय मिस्र में हुआ जहां वे अक्सर अपनी छुट्टियां बिताते थे। अक्टूबर १९९७ में उन्होंने गॉड्स फाइनल रिवेलेशन विषय पर बंगलौर में लेक्चर दिया। इस दौरान बंगलौर से अंगे्रजी में प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका इस्लामिक वॉइस ने उनका इन्टरव्यू लिया। यहां पेश है उस वक्त लिया गया अब्दुर्रहीम ग्रीन के इन्टरव्यू का हिन्दी अनुवाद।
अब्दुर्रहीम ग्रीन इस्लामिक दुनिया में एक जाना पहचाना नाम है। वे पिछले बीस सालों से ब्रिटेन में इस्लामिक मूल्यों के प्रचार प्रसार में जुटे हैं। वे इस्लामिक चैनल पीस टीवी और अन्य इस्लामिक चैनल्स के जरिए भी इस्लाम को बेहतर तरीके से दुनिया के सामने रख रहे हैं। वे पहले ईसाई थे लेकिन ईसाई आस्था से उनका जल्दी ही मोह भंग हो गया। सुकून की तलाश में अब्दुर्रहीम ग्रीन ने कई धर्मों का अध्ययन किया।

मंगलवार, 16 जून 2009

इस्लाम अपनाने के बाद मुझे नई जिंदगी मिली

   मशहूर पॉप सिंगर माइकल जेक्सन इस्लाम अपनाकर मिकाइल बन गए हें यह तो आप जानते हें लेकिन क्या आप जानते हैं माइकल के बड़े भाई जो खुद पॉप सिंगर और गिटारवादक थे. वे भी 1989 में मुस्लिम हो गए थे.
अमेरिका के मशहूर पॉप सिंगर माइकल जैक्शन के बड़े भाई जेरीमन जैक्शन ने 1989 में इस्लाम अपना लिया। इस्लाम कबूल करने के बाद जेरीमन जैक्शन का पहली बार इन्टरव्यू लन्दन के अरबी समाचार पत्र अल-मुजल्ला में प्रकाशित हुआ। इस इन्टरव्यू में उन्होंने इस्लाम अपनाने से जुड़े कई सवालों के जवाब दिए। यह उस वक्त का इन्टरव्यू है जब इनके छोटे भाई माइकल जैक्शन मुस्लिम नहीं हुए थे।
इस्लाम की तरफ आपका सफर कब और कैसे शुरू हुआ?
1989 की बात है, जब मैं अपनी बहन के साथ मध्यपूर्वी देशों की यात्रा पर गया था। बहरीन में रुकने पर हमारा गर्मजोशी के साथ स्वागत किया गया। मैं कुछ बच्चों से मिला और उनसे हल्की-फुल्की गपशप की। मैंने उनसे कुछ सवाल पूछे और उन मासूम बच्चों ने भी जिज्ञासापूर्वक मेरे से कई बातें पूछी। बातचीत के दौरान उन्होंने मुझसे मेरे धर्म के बारे में सवाल किया। मैंने उन बच्चों को बताया कि मैं ईसाई हूं। जब मैंने उनसे पूछा-आप किस धर्म के हो ? इस सवाल पर उनके चेहरे पर एक खास चमक नजर आई। वे सब एक साथ बोले-इस्लाम। उनके इस उत्साहित उत्तर ने मुझे अन्दर तक हिलाकर रख दिया। फिर वे मुझे इस्लाम के बारे में बताने लगे। उन बच्चों ने अपनी उम्र के मुताबिक टुकड़ों में मुझे इस्लाम से जुड़ी कुछ जानकारी दी। उनके बात करने के अन्दाज से मुझे लगा कि उन्हें इस्लाम पर गर्व है। इस तरह मेरा रुख इस्लाम की तरफ हुआ।

सोमवार, 1 जून 2009

मुस्लिम औरतों की जीवन-शैली पसन्द है

अंग्रेजी के पाठकों में कमला दास और मलयालम के पाठकों में माधवी कुट्टी के नाम से जानी जाने वाली मशहूर लेखिका और कवयित्री ने दिसम्बर 1999 ई. में इस्लाम कबूल करके अपना नाम सुरैया रख लिया तो केरल के साहित्य, समाज, धर्म और संस्कृति के क्षेत्रों में जैसा तूफान आया, वैसा वहां के इतिहास में किसी एक व्यक्ति के धर्म बदलने से नहीं आया था।
कमला सुरेया ने आखिर इसलाम क्यों कबूला
 पढिये उन्ही की जुबानी 
 आपने इस्लाम कबूल करने का फैसला कब किया ?
सुरैया : ठीक-ठीक समय तो याद नहीं। मैं समझती हूं, यह 27 वर्ष पहले की बात है।
आपने इतने लम्बे समय तक इन्तजार क्यों किया ?
सुरैया : सत्तर के दशक में, जब मैंने इस पर सबसे पहले अपने पति से बात की तो उन्होंने इन्तजार करने को कहा। उन्होंने मुझे इस्लाम पर किताबें पढऩे की सलाह दी। मैंने दोबारा 1984 ई। के लोकसभा चुनावों से पहले धर्म बदलने के बारे में सोचा था। लेकिन उस समय मेरे सभी बच्चों की न तो शादी हुई थी और न वे किसी अच्छे काम पर लगे थे। मैं अपने निर्णय का प्रभाव उनकी जिन्दगी पर नहीं डालना चाहती थी। अब वे सभी अच्छी तरह सेटल्ड हो गए हैं और खुश हैं। इसलिए मैंने अब इस्लाम कबूल करने का ऐलान किया।
इस्लाम से आपका परिचय किसने कराया ?

रविवार, 31 मई 2009

इस्लाम में पीस है,सुकून है

पाकिस्तान के मशहूर क्रिकेटर यूसुफ योहान्ना की जुबानी कि क्यों बने वे यूसुफ योहान्ना से मोहम्मद यूसुफ
पाकिस्तान के मशहूर क्रिकेटर यूसुफ योहान्ना ने सितम्बर २००५ में इस्लाम कबूल किया। उन्होंने अपना नाम मोहम्मद यूसुफ रखा। यूसुफ का कहना है कि उन्होंने इस्लाम अपनाने के ऐलान से तीन साल पहले ही इस्लाम अपना लिया था लेकिन पारिवारिक कारणों के चलते उन्होंने इसका ऐलान नहीं किया था। यूसुफ की बीवी ने भी यूसुफ के साथ ही इस्लाम अपना लिया और अपना नाम तानिया से फातिमा रख लिया। यहां पेश है मोहम्मद यूसुफ का इन्टरव्यू जिसमें उन्होंने इस्लाम कबूल करने से जुड़े विभिन्न सवालों के जवाब दिए है।
आपका बचपन कहां और कैसे गुजरा?
मेरा बचपन रेलवे कालोनी में गुजरा। मुझे बचपन से ही क्रिकेट खेलने का शौक था।

शुक्रवार, 13 मार्च 2009

खुदा ने मेरे लिए इस्लाम को चुना



पीटर सैंडर्स ने अपना कैरियर साठ के दशक के मध्य में शुरू किया। वे अपने वक्त के संगीत के सितारों बॉब डायलन,जिमी हैंडरिक्स, द डोर्स और रोलिंग स्टोन्स की अगली पीढ़ी के नुमाइंदे थे। लेकिन संगीत से सैंडर्स के दिल की प्यास नहीं बुझ सकी।
१९७० के आखिर में उन्होंने भारत की आध्यात्मिक यात्रा की। साल भर बाद जब वे ब्रिटेन लौटे तो इस्लाम धर्म ग्रहण कर चुके थे और उन्होने अपना नाम बदलकर अब्दुल अदीम रख लिया था। सैंडर्स अब प्यासे नहीं थे। इस्लाम ने उनके काम को नई ऊर्जा दे दी थी। इसी वर्ष उन्होंने मुस्लिम देशों की यात्राएं शुरू की।
१९७१ में उन्होंने काबा और हज यात्रियों की करीब से तस्वीरें खींची जो पहली बार पश्चिमी अखबारों-द सण्डे टाइम्स और द ऑब्जर्वर में छपीं। आज सैंडर्स या अब्दुल अदीम मुस्लिम समाज के सबसे बड़े फोटोग्राफर के रूप में जाने जाते हैं,संभव है वे इकलौते भी हों। अब्दुल अदीम एक फोटो प्रदर्शनी लगाने जकार्ता आए। रिपब्लिका में प्रकाशित इमान यूनियार्ता एफ़ द्वारा लिए गए उनके साक्षात्कार के प्रमुख अंश हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं
१९७१ में भारत की यात्रा के बाद आपने इस्लाम धर्म अपना लिया। यह कैसे हुआ?

रविवार, 22 फ़रवरी 2009

हम ईश्वर की शरण में आना चाहते थे

अपनी बीवी सायरा के साथ ऐ आर रहमान
इस्लाम कबूल करने का फैसला अचानक नहीं लिया गया। यह फैसला मेरा और मेरी मां दोनों का सामूहिक फैसला था। हम दोनों सर्वशक्तिमान ईश्वर की शरण में आना चाहते थे।
संगीतकार ए आर रहमान ने सन् २००६ में अपनी मां के साथ हज अदा किया था। हज पर गए रहमान से अरब न्यूज के सैयद फैसल अली ने बातचीत की। यहां पेश है उस वक्त सैयद फैसल अली की रहमान से हुई गुफ्तगू।
भारत के मशहूर संगीतकार ए आर रहमान किसी परिचय के मोहताज नहीं है। तड़क-भड़क और शोहरत की चकाचौंध से दूर रहने वाले ए आर रहमान की जिंदगी ने एक नई करवट ली जब वे इस्लाम की आगोश में आए। रहमान कहते हैं-इस्लाम कबूल करने पर जिंदगी के प्रति मेरा नजरिया बदल गया। भारतीय फिल्मी-दुनिया में लोग कामयाबी के लिए मुस्लिम होते हुए हिन्दू नाम रख लेते हैं,लेकिन मेरे मामले में इसका उलटा है यानी था मैं दिलीप कुमार और बन गया अल्लाह रक्खा रहमान। मुझे मुस्लिम होने पर फख्र है।

मंगलवार, 10 फ़रवरी 2009

एक अमेरिकी मॉडल जो मुसलमान हो गयी

अमीना जनां
आश्चर्यचकित रह गयी कि अमेरिकी लेखकों के दुष्प्रचार के विपरीत अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्ल० मानव-जाति के महान उद्धारक और सच्चे शुभ-चिन्तक हैं। विशेष रूप से उन्होंने महिलाओं को जो सम्मान दिया है, उसकी पहले या बाद में कोई मिसाल नहीं मिलती। अल्लाह का लाख-लाख शुक्र है कि मेरी बातों से प्रभावित होकर अब तक लगभग 600 अमेरिकी महिलाएं इस्लाम के दायरे में दाखिल हो चुकी हैं।
    मेरे माता-पिता प्रोटेस्टेन्ट ईसाई थे। ननिहाल और ददिहाल दोनों ओर धर्म की बड़ी चर्चा थी। हाई स्कूल की शिक्षा समाप्त हुई तो मेरा विवाह हो गया। और शादी होते ही मैं मॉडलिंग के पेशे से जुड़ गयी। अल्लाह ने मुझे सुन्दर बनाया था। फिर मैं मेहनत भी खूब करती थी। जल्द ही कारोबार चल निकला। पैसे की रेल-पेल हो गयी। गाड़ी, बंगला आदि सुख-सुविधाओं की सभी चीज़ें उपलब्ध हो गयीं। स्थिति यह हो गयी थी कि अपनी पसन्द का जूता खरीदने के लिए मैं हवाई जहाज़ से दूसरे शहर जाती थी।